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कट्टरता की सभी दीवारों को तोड़कर एकजुट व खुशहाल भारत बनाना हमारा कर्तव्य

कट्टरता की सभी दीवारों को तोड़कर एकजुट व खुशहाल भारत बनाना हमारा कर्तव्यरांची, 06 फरवरी आलंदी (पुणे), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि पूरी दुनिया को भारत की आवश्यकता है। हमारे यहां ज्ञान और विज्ञान की परंपरा है। हमें ये ज्ञान संपूर्ण दुनिया को देना है। इसलिए, हम सभी का कर्तव्य है कि हम कट्टरता की सभी दीवारों को तोड़ें और एक अखंड, एकजुट, खुशहाल और सुंदर भारत बनाएं।

श्रीक्षेत्र आलंदी स्थित स्वामी गोविंददेव गिरि जी महाराज के ‘गीता भक्ति अमृत महोत्सव’ कार्यक्रम के उद्घाटन में सरसंघचालक जी संबोधित कर रहे थे। मंच पर स्वामी राजेंद्रदास जी महाराज, स्वामी गोविंददेव गिरि जी महाराज, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के केंद्रीय कार्यकारिणी सदस्य भय्याजी जोशी, सदानंद महाराज जी, मारोतिबाबा कुरेकर जी महाराज, लोकेशमुनि जी, प्रणवानंद जी महाराज प्रमुख रूप से उपस्थित थे। अमृत महोत्सव समारोह के अवसर पर स्वामी गोविंददेवगिरि महाराज सहित उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों और संतों का सम्मान किया गया।

डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि राष्ट्र के शाश्वत मूल्यों का संरक्षण व आचरण करना सभी संत- महंतों का महत्वपूर्ण योगदान है। इस कार्यक्रम के अवसर पर सभी संत–महंत एकत्र आ रहे हैं, यह एक अमृत योग है। जिस तरह महाभारत के बाद नैमिषारण्य में ऋषियों ने बैठक कर शास्त्रों पर मंथन किया था, उसी तरह इस अवसर पर कई संत और महंत यहां जुटे हैं।

कट्टरता की सभी दीवारों को तोड़कर एकजुट व खुशहाल भारत बनाना हमारा कर्तव्यउन्होंने कहा कि 22 जनवरी को अयोध्या में श्री रामलला को विराजमान किया गया है। जो कुछ भी अच्छा हो रहा है, वह ईश्वर की इच्छा है। यह देश के महापुरुषों, साधु-संतों की शक्ति और साहस से संभव हुआ है। यह नियति की योजना है, जो लोग सोये हुए हैं उन्हें जगाने के लिए संत सदैव प्रयत्नशील रहते हैं। संत ज्ञान के साधक होते हैं और घुमंतू बंधु इसे सर्वत्र फैलाने के लिए प्राचीन काल से ही निरंतर प्रयास करते रहे हैं। बहुत से लोग सोचते हैं कि ग्रामीण लोग संपूर्ण विज्ञान और प्रौद्योगिकी को नहीं समझ सकते हैं। लेकिन यह बात कई बार साबित हो चुकी है कि वे प्राचीन काल से ही कई छोटे-छोटे वैज्ञानिक प्रयोग करते रहे हैं।

सरसंघचालक जी ने कहा कि आस्था, भक्ति और समर्पण सतत विद्यमान रहने वाले गुण हैं। इसमें निरन्तरता बनाये रखने का कार्य संत एवं विद्वान कर रहे हैं।  इसीलिए संत ज्ञानेश्वर ने भगवान के प्रति निष्ठा मांगी और छत्रपति शिवाजी महाराज ने समझाया कि यह श्री की इच्छा थी कि यह राज्य बने। तो ऐसा सात्विक कार्यक्रम होना भी नियति की इच्छा है। उन्होंने कहा कि दुनिया बदल रही है, लेकिन हमें अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए। हमें भारत को विश्व गुरु बनाने के लिए निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए।

यहां होने वाला संत सम्मेलन ज्ञान और भक्ति के संगम से हो रहा है। कर्म के बिना भक्ति पंगु है। उन्होंने गीता के ज्ञान, कर्म और भक्ति की नींव पर ध्यान केंद्रित करते हुए इस कार्यक्रम का लाभ उठाने का आग्रह किया।

इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वामी गोविंददेव गिरी जी महाराज को श्रीक्षेत्र अयोध्या में प्रकाशित एक डाक टिकट उपहार स्वरूप भेजा।

स्वामी गोविंददेव गिरि जी महाराज ने अपना मनोगत व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देशभक्ति का खुला विश्वविद्यालय है। सभी न्यासों का केंद्र भगवद-गीता है और हमेशा आलंदी में बैठकर श्रीमद्भागवत सुनने की कामना है।

निष्काम कर्मयोगी श्रीधरपंत फड़के, डॉ. शरद हेबालकर, मुकुंदराव गोरे, प्रकाश सोमण, अशोक वर्णेकर को विशेष रूप से सम्मानित किया गया। साथ ही, स्वामी गोविंददेवगिरि महाराज द्वारा लिखित महाभारत पर पहला खंड प्रकाशित किया गया।


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