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चौंसठ योगिनी मंदिर अर्थात गोलकी मठ

चौंसठ योगिनी मंदिर अर्थात गोलकी मठरांची, 15 मई:भेडाघाट के आकर्षणों में धुआंधार और पंचवटी की बोटिंग के साथ, चौंसठ योगिनी मंदिर भी रहता है. लेकिन यह मुख्य आकर्षण में शामिल नहीं रहता. भेडाघाट की बोटिंग और धुआंधार के बाद, यदि १५० सीढ़ियाँ चढ़ने की हिम्मत है, तो चौंसठ योगिनी मंदिर के दर्शन हो जाते हैं.

बचपन से मुझे चौंसठ योगिनी मंदिर का आकर्षण था. पहले धुआंधार देखने के बाद, पंचवटी जाते समय रास्ते में चौंसठ योगिनी कर के ही आगे बढ़ना, यह परंपरा रहती थी. इसलिए किसी मेहमान को अगर घुमाने के लिए भेडाघाट लाते थे, और ऊंची सीढ़ियाँ देखकर वे यदि कहते, ‘अरे, इतने ऊंचे चढ़कर पुराना मंदिर ही तो देखना है! इसको स्किप करते हैं…’ तो मुझे गुस्सा आता था. उन दिनों सीढ़ियों के दोनों ओर बेल वृक्षों का मानों जंगल था. बेल फल नीचे पड़े मिल जाते थे. उनको जमा करते ऊपर जाने का आनंद कुछ और ही था…

मैं कई बार इस मंदिर में गया हूँ. ऊपर से भेडाघाट और जबलपुर को निहारना बड़ा अच्छा लगता है. अंदर उन गोलाकार मूर्तियों के बीच, एक आदिम वातावरण की पवित्र भावना मन में घर करती जाती है…!

पुरातत्व विभाग ने एक छोटी सी पट्टिका लगाकर इस स्थान के बारे में अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है. हम लोगों का दुर्भाग्य है कि इस अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान के बारे में हम कुछ नहीं जानते. धुआंधार और पंचवटी घाट तो निसर्ग निर्मित हैं. किन्तु यह चौंसठ योगिनी का मंदिर हमारे पूर्वजों के पुरुषार्थ की गाथा है, हमारे अतीत का गौरव है.

चौंसठ योगिनी मंदिर अर्थात गोलकी मठहमारे देश में चौंसठ योगिनी के पांच प्रमुख मंदिर हैं. दो ओड़िशा में हैं – एक भुवनेश्वर के पास हिरापुर में और दूसरा बालंगीर जिले के रानीपुर में. ये दोनों ही गोलाकार हैं. किन्तु इनमें चौंसठ योगिनियों की मूर्तियों में भिन्नता है. एक में देवियां किसी वाहन पर सवार हैं, तो दूसरे मंदिर में नृत्य की मुद्रा में हैं. शेष मंदिर मध्यप्रदेश में हैं. मुरैना का मंदिर प्रसिद्ध है. क्योंकि अंग्रेजों ने जब आज का संसद भवन बनाया, तब इसी मंदिर से प्रेरित होकर उसका डिज़ाइन बनाया, ऐसा कहा जाता है. इस मंदिर में चौंसठ कक्षों में देवी की मूर्तियां नहीं हैं. दूसरा मंदिर खजुराहो में है, लेकिन वह गोलाकार नहीं है.

अपने जबलपुर का चौंसठ योगिनी का मंदिर पूर्ण गोलाकार है. नाम ‘चौसठ’ होने के बाद भी इसमें ८१ कक्ष हैं. अधिकांश कक्षों में योगिनियों की (अर्थात् देवी स्वरूप की) प्रतिमाएं हैं. ये सभी प्रतिमाएं मुसलमान आक्रांताओं द्वारा खंडित की गई हैं. अपवाद है – वरेश्वर शिव की मूर्ति. ऐसी मान्यता है कि जब आक्रांता इस मूर्ति को खंडित करने में लगे थे, तभी उन पर मधुमक्खियों का हमला हुआ और मूर्ति बच गई.

यह मंदिर कल्चुरी वंश की त्रिपुरी शाखा के युवराज देव (प्रथम) ने सन् ९१५ से ९४५ के बीच में बनाया. सभी मूर्तियां उस समय नहीं बनाई गई थी. कुछ पुरानी मूर्तियों को भी इस मंदिर के कक्ष में प्रतिष्ठापित किया गया. इन ८१ गोलाकार प्रतिमाओं के बीच में भगवान शिव का मंदिर है, जो इन गोलाकार कक्षों के बनने के लगभग दो सौ वर्षों के बाद बना. इस मंदिर में नंदी पर बैठी शिव – पार्वती की बारात वाली मूर्ति पूरे देश में अनूठी है.

किन्तु चौंसठ योगिनी मंदिर का महत्व मात्र इतना ही नहीं है. कल्चुरी राजाओं ने इस मंदिर के रूप में एक विश्वविद्यालय बनाया था – ‘गोलकी मठ’ नाम से. इस विश्वविद्यालय में गणित, खगोल शास्त्र, ज्योतिष शास्त्र और तंत्र विज्ञान का प्रशिक्षण दिया जाता था. त्रिपुरी के कल्चुरी शासक शैव पंथीय थे. भगवान शिव के परमभक्त थे. कल्चुरी शासन की राजमुद्रा में शंकर का वाहन नंदी है.

इस गोलकी मठ की विशेषता यह कि ग्यारहवीं, बारहवीं और कुछ अंशों में तेरहवीं शताब्दी में, इसको मानने वाले पूरे देश भर थे. तब तक, ‘गोलकी मठ’ यह एक संप्रदाय बन गया था, जिसका गुरुस्थान त्रिपुरी (तेवर) के पास का चौंसठ योगिनी मंदिर था.

गोलकी मठ के संस्थापक थे, ईशान शिव गुरुदेव. उनकी शैव प्रणाली पर, ‘त्रिवेन्द्रम संस्कृत सीरीज’ ने सौ वर्ष पहले एक पुस्तक प्रकाशित की थी – दसवीं सदी की ईशान शिव गुरुदेव पद्धति’.

रीवा के पास, रीवा – गुढ़ रास्ते पर, सोलह किलोमीटर पर, हुजूर तहसील में एक गांव है, गुर्गी. इस गांव में अनेक भग्नावशेष हैं. यहां पर कुछ शिलालेख भी मिले हैं, जिनमे गोलकी मठ की शाखा गुर्गी में होने का स्पष्ट उल्लेख है.

लेकिन इससे भी स्पष्ट प्रमाण मिले हैं, आंध्र प्रदेश में. वहां गुंटूर जिले के मलकापुरम और त्रिपुरांतकम में उत्खनन हुआ. अनेक स्तंभ (Pillar) मिले, जो Malkapur Pillar Inscription नाम से प्रसिद्ध हैं. इनमें से अनेक स्तंभों पर ‘गोलकी मठ’ का बड़ा स्पष्ट उल्लेख है. उन सारे ऐतिहासिक तथ्यों से जो चित्र सामने आता है, वह गौरवान्वित करने वाला और अद्भुत है.

दसवीं शताब्दी से गोलकी मठ का प्रभाव बढ़ना प्रारंभ हो गया था. गोलकी मठ के प्रमुख, अपने शिष्य गण निर्माण कर उन्हें ज्ञान और पंथ का प्रसार करने सारे भरतखंड में भेज रहे थे. उन दिनों आंध्र प्रदेश में काकतीय वंश का प्राबल्य था. इन का साम्राज्य, दक्षिण भारत के बड़े क्षेत्र में फैला था. ऐसे काकतीय वंश के राजा को प्रभावित किया, गोलकी मठ के आचार्य सद्भाव शंभु ने. काकतीय वंश ने गोलकी मठ की शैव पद्धति को अपनाया. काकतीय साम्राज्य की रानी रुद्रांबा (रुद्रम देवी) ने गोलकी मठ के प्रमुख आचार्य विश्वेश्वर शंभु को त्रिपुरी (तेवर) से आंध्र बुलाया. वहां उनका बहुत सम्मान किया. उनको राजगुरु का पद दिया. उन्हें कृष्णा नदी के किनारे बसा संपन्न गांव ‘मंडरम’ दान में दिया, ताकि उससे होने वाली आय से नर्मदा किनारे का गोलकी मठ ठीक से चल सके. काकतीय साम्राज्य पूर्णतः शैव हो गया. उस राज परिवार के सदस्य और साम्राज्य के अनेक अधिकारी त्रिपुरी (तेवर) के पास गोलकी मठ में गुरुस्थान का दर्शन करने आते थे. यह सिलसिला आगे भी चलता रहा. आंध्र के कुडप्पा, कर्णूल, गुंटूर और नॉर्थ अर्कोट जिलों में गोलकी मठ की शाखाएं थीं. त्रिपुरी का गोलकी मठ और आंध्र के प्रबल काकतीय साम्राज्य के बीच गुरु – शिष्य के संबंध बने और आगे भी दृढ़ होते गए. मलकापुरम के नंदी स्तंभ पर ३९५ क्रमांक के शिलालेख में इसका विस्तार से वर्णन है.

आज से लगभग आठ सौ – नौ सौ वर्ष पहले, जबलपुर के आस पास एक वैभवशाली, ज्ञान संस्कृति का प्रवाह अविरल बह रहा था. भारतवर्ष के उत्तर – दक्षिण रास्ते पर त्रिपुरी (तेवर) एक समृद्ध और संपन्न नगर था. नर्मदा के तट पर चौंसठ योगिनी मंदिर अर्थात गोलकी मठ ज्ञान मंदिर था. काकतीय साम्राज्य जैसे अनेक राजवंशों का यह गुरुस्थान था. गोलकी मठ का निर्माण करने वाले हैहय कल्चुरी सम्राट युवराज देव (प्रथम) के बारे में चौंसठ योगिनी मंदिर में कुछ जानकारी नहीं है, और ना ही, गोलकी मठ का डंका सारे भारतवर्ष में बजाने वाले गोलकी मठ के प्रमुख आचार्य विश्वेश्वर शंभु के बारे में…!

कितनी मजबूत, कितनी वैभवसंपन्न, ज्ञान संपन्न विरासत के संवाहक हैं हम…! लेकिन हम अभागी, हमें यह सब ज्ञात ही नहीं !


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