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पवित्र शिखरजी की शुचिता की रक्षा के लिए राजस्थान से लेकर झारखंड तक सड़कों पर जैन समाज

पवित्र शिखरजी की शुचिता की रक्षा के लिए राजस्थान से लेकर झारखंड तक सड़कों पर जैन समाजरांची, 05 जनवरी‘सम्मेद शिखर’ अर्थात ‘समता का शिखर’ जैन तीर्थ सम्मेद शिखरजी झारखंड के गिरिडीह जिले के मधुबन की पहाड़ी में स्थित एक संरक्षित तीर्थ स्थल है. यहां से अनंतानंत सिद्ध भगवान व बीस तीर्थंकर भगवान मोक्ष पधारे हैं, इस तीर्थ की भाव सहित वंदना करने पर अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. कहा भी गया है – “एक बार वंदे जो कोई ताही नरक पशुगति नहीं होई.”

लाखों श्रद्धालु इस महान तीर्थ की वंदना करके अपना जीवन धन्य कर चुके हैं. हर भव्य जीव की यह इच्छा होती है कि वह इस पावन पुनीत तीर्थ की वंदना एक बार जरूर करे. विशाल दुर्गम पहाड़ियों पर बसे इस उत्तुंग तीर्थ की वन्दना सर्वप्रथम सगर चक्रवर्ती जी (इक्ष्वाकु वंशी) ने नंगे पैर की थी जो द्वितीय तीर्थंकर भगवान अजीतनाथ के शासनकाल में हुए.

जैन समाज में मान्यता है कि सम्मेद शिखरजी के इस क्षेत्र का कण-कण बेहद ही पवित्र है, पूजनीय है. अनेकों जैन मुनियों ने इस क्षेत्र से मोक्ष प्राप्त किया है. जैन समाज के लोग सम्मेद शिखरजी पहुंचकर 27 किलोमीटर के दायरे में फैले मंदिर-मंदिर जाते हैं और वंदना करते हैं. जैन धर्म के लोग वंदना नए शुद्ध धुले वस्त्र पहनकर करते हैं एवं कुछ खाते-पीते भी नही हैं.

जैन समाज की मांग है कि 20 तीर्थंकरों की निर्वाणभूमि सम्मेद शिखरजी को पर्यटन क्षेत्र घोषित किए जाने के बाद वहां गैर धार्मिक गतिविधियां शुरू हो गई हैं और केवल सम्मेद शिखर ही नहीं, बल्कि गुजरात के शत्रुंजय तीर्थ में भी असामाजिक तत्वों द्वारा जैन समाज के मंदिरों में तोड़फोड़ कर मूर्तियों को खंडित किया गया. उस पवित्र पहाड़ का अवैध खनन किया गया है, शिकायत पत्र विभागों में पड़े धूल खा रहे हैं और यह सब कुछ शासन प्रशासन की नाक के नीचे चल रहा है.

समस्या को लेकर समाज ने विशेष आंदोलन कर अपराधियों को तुरंत पकड़ने का आग्रह शासन से किया. यही नहीं वर्ष 2000 में गिरनार पर्वत के नेमीनाथ मंदिर पर असामाजिक तत्वों ने जबरन कब्जा कर लिया और वहां दत्त मंदिर बता कर जबरन चढ़ावा वसूल कर जैन धर्मावलंबियों से बदतमीजी की जाती है. गिरनार पर्वत पर कई जैन साधुओं की हत्या करवा दी एवं कई साधुओं पर प्राणघातक हमले किए गए हैं.

सब देख कर समाज सम्मेद शिखर को पर्यटन क्षेत्र घोषित नहीं करने की मांग कर रहा है. जैन समाज कड़े नियम के साथ जीवन निर्वाह करता है. जैन समुदाय ने आज तक किसी भी सरकारी लाभ की मांग नहीं की और न ही ऐसी मंशा रखता है.

अब समाज के इस पवित्र तीर्थ स्थल के मुद्दे पर विस्तार से बात करें तो वर्ष 2018-19 में भाजपा की रघुवर दास की सरकार ने ठंडी पड़ी झारखंड इकोनॉमी को गति देने के लिहाज से कई क्षेत्रों को टूरिज्म स्पॉट घोषित कर वहां से झारखंड को खड़ा करने का प्लान किया. और 2 अगस्त, 2019 को मसौदा तैयार करके केंद्र सरकार को भेजा.

तदोपरांत 25 दिसंबर, 2019 को कांग्रेस-झामुमो-आरजेडी की नई हेमंत सोरेन सरकार ने जब यह सोचा कि राज्य में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए अब तीर्थ स्थलों को जोड़ना होगा तो ऐसा सोच कर रिलिजियस टूरिज्म को आगे बढ़ाया. झारखंड सरकार की नई पर्यटन नीति बनी, उसमें घोषणा की गई कि राज्य में धार्मिक सांस्कृतिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा. बाद में सोरेन सरकार ने रघुवर दास के बनाए मसौदे में देवघर और पारसनाथ (शिखरजी) मुख्य पहाड़ी के मुख्य स्थल सहित 40 अन्य स्थानों को भी जोड़ दिया. यही कदम झारखंड सरकार के लिए गले की फांस बन गया.

अब एक सवाल जो सबसे पहले जन्म लेता है, वह यह है कि क्या आज नेताओं में या नौकरशाहों में इस विवेक का अभाव है कि जैन तीर्थ स्थल के संबंध में लिए जाने वाले इतने बड़े निर्णय को स्वयं ले लेते हैं. इसमें ना ही जैन समाज की कोई राय ली जाती है, ना ही उनसे कोई बात की जाती है और इतने बड़े तीर्थ स्थल को पर्यटन स्थल घोषित कर देने की अनुमति राज्य सरकार भी दे देती है और केंद्र सरकार से भी उसे स्वीकृति प्राप्त हो जाती है. सबसे बड़ा प्रश्न तो न्यायालय के उस आचरण से है जो कथित अल्पसंख्यकों से जुड़े छोटे बड़े हर मुद्दे पर स्वतः संज्ञान ले लेती है.

यहां महत्वपूर्ण यह भी है, क्या इस दृष्टि से नहीं देखा जाना चाहिए कि यह जैन समाज सहित भारत के तीर्थ स्थलों को बर्बाद करने का एक षड्यंत्र है. जिस प्रकार आज आए दिन हम देखते हैं कि महाकाल मंदिर जैसे विशेष पर्यटन स्थल पर इस प्रकार के लोग पहुंच रहे हैं जो वहां रील्स बना कर अश्लीलता फैला रहे हैं. कहीं कोई धार्मिक स्थल पर प्री वेडिंग शूट करवा रहा है. यह सब अमर्यादित व्यवहार भारत के तीर्थ स्थलों में नहीं होना चाहिए.

राज्य सरकार की बात करें तो कमजोरी यहां भी दिखाई देती है कि इस क्षेत्र में बिगड़ती कानून व्यवस्था पर उसकी मौन स्वीकृति रही है. झारखंड में सम्मेद शिखर पर नक्सलियों का जमावड़ा इस कदर है कि वहां जाने वाले लोग एक रुपये प्रति व्यक्ति के हिसाब से चुंगी कर देते हैं और डोली पर यात्रा करने वाले क्या बच्चे और क्या बूढ़े-बुजुर्ग चाहे कोई भी हों, उन्हें ₹40 प्रति व्यक्ति के हिसाब से कर नक्सलियों को चुकाना पड़ता है. स्थानीय धर्मशाला से तीस हजार से एक लाख तक का वार्षिक सुरक्षा शुल्क नक्सली वसूल करते हैं. यदि कोई न दे तो उसे बीच चौराहे पर गोली मार कर लटका देते हैं.

यह बात भी छिपी नहीं है कि यही राज्य सरकार परोक्ष रूप से ही सही माओवादियों के विरुद्ध नरम रुख अपनाते रही है. इसे कुंदन पाहन जैसे माओवादियों से जुड़े प्रकरण से बखूबी समझा जा सकता है, झारखंड के गिरिडीह जिले की नक्सलियों की स्व-घोषित कर व्यवस्था उनकी करोड़ों रुपयों की आय का साधन है. इससे तो यही स्पष्ट है कि इस घोषणा से राज्य सरकार की आय बढ़े ना बढ़े, पर वहां नक्सलियों की आय अवश्य बढ़ेगी.

फिर मधुबन में बसे गांव की अर्थव्यवस्था सम्मेद शिखर से ही चलती है और सम्मेद शिखर पर ही उनके छोटे व्यवसाय संचालित होते हैं. परंतु पर्यटन स्थल घोषित होने पर बड़े संस्थानों के आ जाने से क्या उनके रोजगार पर असर नहीं पड़ेगा. फिर केंद्र सरकार पर छोटे उद्योगपतियों का गला दबाने का आरोप मढ़ने वाली कांग्रेस की गठबंधन सरकार आखिर किस आधार पर इसे आगे बढ़ा रही, क्या बड़े होटल खुलने, बार खुलने, मांस मदिरा की दुकान खुलने से जैन समाज की धार्मिक भावनाओं को आहत करना सही होगा. यदि ऐसा है तो यह संविधान का भी उल्लंघन होगा और सरकारों के नैतिक चरित्र का भी.

टूरिज्म के क्षेत्र में 6% रोजगार प्राप्त होता है व सरकार की आय 19400 करोड़ होती है. सरकार इतनी बड़ी टूरिज्म इंडस्ट्री से बहुत कुछ कर सकती है. इसके लिए उसे सम्मेद शिखर को पर्यटक स्थल घोषित करने की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है. वहीं, इस आंदोलन की तरफ किसी भी राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी ने तत्काल मुद्दे पर खबर को प्रकाशित नहीं किया. यदि यह खबर अन्य ईसाई या मुस्लिम धर्म से संबंधित समुदाय से होती तो क्या बीबीसी, क्या एनडीटीवी और क्या द वायर, ये सभी मीडिया हाउस नमक मिर्च लगाकर जनता के सामने परोस देते. परंतु महीनों के बाद भी किसी भी चैनल ने इस पर रिपोर्ट देना उचित नहीं समझा.

विडंबना तो यह है कि राजस्थान में जहां यह प्रदर्शन लंबे समय से चल रहा है, वहीं झारखंड की सरकार विगत दो महीने से चल रहे जैन समाज के विरोध-प्रदर्शन व आंदोलन में कोई रुचि नहीं ले रही. वोट बैंक की राजनीति के कारण नेता अथवा मंत्री इस पर कुछ कहने से बच रहा है. यहां तक कि जिन कथित अल्पसंख्यकों की रक्षा की सौंगन्ध लेकर राहुल गांधी भारत जोड़ने निकले हैं, उन्हीं के कांग्रेस शासित राजस्थान में मुनि सुज्ञेय सागर जी 9 दिवस का अनशन करते हुए समाधि को प्राप्त हो गए, फिर भी कोई राजनेता झांकने नहीं पहुंचा.

झारखंड की राज्य सरकार इस पर पूर्ण एक्शन लेने का अधिकार रखती है. परंतु वह मौन रह कर शायद यह प्रदर्शित कर रही है कि उस सरकार की चाबी भी अर्बन नक्सल समर्थकों के पास है जो मुद्दा देख ही कदम बढ़ाते हैं. काश, यह किसी जुनैद, किसी पहलू खान से जुड़ी घटना होती तो क्या राज्य सरकार यही रुख अपनाती अथवा सरकार वोट बैंक के लिए कुछ भी कर गुजरती.

उम्मीद है सरकार का ध्यान जैन समाज की तरफ जरूर जाएगा क्योंकि वे भीख नहीं मांग रहे और भारत के तीर्थ स्थल, भारत के साधु, धार्मिक रीति रिवाज, धार्मिक भावनाएं यह सब भारत की अनमोल धरोहर हैं जो भारत की प्राचीन संस्कृति को विश्व के सामने प्रदर्शित करती हैं. तो इस मामले में सरकारों को यह समझना होगा कि यदि हिजाब जैसे निजी विषय को लेकर भारत भर में दिन रात एक दिखाई देने लगते हैं, इतिहास भूगोल सब कुछ उस पहनावे की स्वतंत्रता एवं धार्मिक भावनाएं आहत होने के परिणीति में बंध जाता है तो यहां तो बात अपने गुरुओं-तीर्थंकरों के सम्मान की है. कथित अहिंसा के पुजारियों से लेकर, समानता एवं उदारता का ढोल पीटने वाले, अल्पसंख्यकों के नाम पर कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत जोड़ने का राग अलापने वाले इन सब को इस विषय पर चुप्पी तोड़नी ही पड़ेगी.

लेख- आशीष जैन

 


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