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राष्ट्र प्रथम है, राष्ट्र है तो हम और आप हैं – आचार्य सुनील सागर जी महाराज

राष्ट्र प्रथम है, राष्ट्र है तो हम और आप हैं – आचार्य सुनील सागर जी महाराजरांची, 13 मईअजयमेरु, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अजयमेरु महानगर द्वारा आयोजित कुटुम्ब एकत्रीकरण कार्यक्रम में जैन मुनि आचार्य सुनील सागर जी महाराज ने कहा कि भारतीय दृष्टि में पूरी पृथ्वी ही कुटुम्ब है। हम जियो और जीने दो की भावना रखने वाले भारतीय प्रत्येक जीवन का सम्मान और प्रत्येक आत्मा का बहुमान करते हैं। हम जीव जंतुओं को सताना भी पाप समझते हैं। राष्ट्र हमारे लिए प्रथम है क्योंकि राष्ट्र है तो हम और आप हैं। एकजुटता की निष्ठा प्रत्येक नागरिक की रगों में बहनी चाहिए, तभी भारत विश्वगुरु की श्रेणी में प्रतिष्ठित होगा।

मुख्य वक्ता के रूप में उन्होंने कहा, जैन संप्रदाय में 20 तीर्थंकर इक्ष्वाकु वंश के रहे हैं। अपने श्रीराम भी इक्ष्वाकु वंश से हैं। अतः हम किसी का भी अनुसरण करें, डीएनए सभी का एक ही है। जैन संप्रदाय के सिद्धांतों को लेकर बात करें तो जैन जैन हैं, लेकिन जब सांस्कृतिक रूप की बात करते हैं तो जैन भी हिन्दू ही हैं। हमारा भारत देश श्रेष्ठ राजा भरत (श्रीराम के अनुज) व शकुंतला के पुत्र चक्रवर्ती राजा भरत के गौरव से जाना जाता है। अतः हमारी पहचान इंडिया नहीं भारत है।

स्व भाषा का आग्रह करते हुए मुनि श्री ने कहा कि भाषाएँ कितनी भी पढ़ो व जानो, किन्तु प्रथम भाषा हिन्दी है, फिर प्रादेशिक भाषा। अंग्रेजी का अंधानुकरण नहीं होना चाहिए।

आचार्य जी ने वर्तमान भारत की सीमाओं के खंडित होने पर चिंता व्यक्त करते हुए सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट अशोक के समय देश की स्थिति तथा आदिकाल में श्रीराम, श्रीकृष्ण के समय की स्थितियों का स्मरण करवाया। उन्होंने कहा, हमारी वैदिक संस्कृति आदिकाल से है। वर्ण व्यवस्था कर्म आधारित थी, अस्पृश्यता का कोई स्थान नहीं था। लेकिन आज समाज में एक विषम असंतुलन पैदा हो रहा है। ढाई दिन के झोपड़े की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि आज वहाँ भ्रमण पर जाने पर भी विरोध हो रहा है। वहाँ का वास्तु, इतिहास कभी हमारे देश का गौरव रहा है।

उन्होंने कहा कि सार्वजनिक स्थानों का दुरुपयोग, गंदगी फैलाना, राजस्व नहीं चुकाना, बिजली चोरी, नागरिक शिष्टाचार का अनुसरण नहीं करना, देश से गद्दारी करने जैसा ही है।


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