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वैज्ञानिक रज्जू भैया की स्मृति में होगा व्याख्यान माला का आयोजन

रांची, 5 फ़रवरी 2019 : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो. राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) एक वैज्ञानिक थे।  संघ का प्रचारक बनने के बाद भी 1966 तक वे इलाहाबाद विश्‍वविद्यालय में परमाणु भौतिकी पढ़ाते रहे और विभागाध्यक्ष रहे। वर्ष 2003 में 81 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ था 

Prof. Rajendra Singhपाथेय-कण ने उनकी स्मृति में एक व्याख्यान-माला प्रारम्भ करने का निर्णय लिया है।  प्रत्येक वर्ष उनके जन्मदिन के आसपास किसी सामयिक एवं महत्वपूर्ण विषय पर व्याख्यान आयोजित किया जाएगा।  पहला व्याख्यान 09 फरवरी, शनिवार को सायं 4.00 बजे " प्राचीन भारत का विज्ञान " विषय पर होगा।  मुख्य अतिथि के रूप में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष ए.एस. किरण कुमार को आमंत्रित किया गया है । मालवीय नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी के निदेशक उदय कुमार कार्यक्रम की अध्यक्षता करेंगे । विज्ञान भारती के संगठन मंत्री जयंत सहस्रबुद्धे मुख्य वक्ता रहेंगे। 

पोस्टर प्रदर्शनी : इस अवसर पर पोस्टर प्रदर्शनी भी रखी गई है।  स्कूल तथा कॉलेज के छात्र प्राचीन भारत का विज्ञान विषय पर ही पोस्टर बनाएंगे।  प्रदर्शनी का शुभारम्भ 9 फरवरी को ही दोपहर 12 बजे भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र में रहे वैज्ञानिक डॉ. जगदीश चन्द्र व्यास करेंगे।  कनिष्ठ तथा वरिष्ठ वर्गों के तीन-तीन सर्वश्रेष्ठ पोस्टर बनाने वालों को पुरस्कृत किया जाएगा। 

विज्ञान की दीर्घ परम्परा : प्राचीन काल से भारत विज्ञान में सबसे आगे रहा है।  गाँधीवादी चिन्तक धर्मपाल ने एक पुस्तक लिखी है – साइंस एण्ड टेक्नोलोजी ऑफ एटीन्थ सेन्चुरी इण्डिया।  इसमें अंग्रेज अधिकारियों की ही टिप्पणियाँ हैं।  इस पुस्तक में यह सिद्ध हो गया है कि अठारवीं सदी तक भी  भारत विज्ञान में यूरोप से मीलों आगे था।  बाद में अंग्रेजों ने सारा विज्ञान नष्ट कर दिया। 

– महरोली, दिल्ली में कुतुब मीनार के पास एक चौबीस फीट ऊँचा लोहे का स्तम्भ है।  यह सत्रह सौ साल पुराना है।  आज तक इसमें जंग नहीं लगा है. इतना  शुद्ध इस्पात भारत में बनता था।  इस स्तम्भ को ढाला कैसे गया होगा, यह भी एक आश्‍चर्य है । 

– कुछ वर्ष पहले इंग्लैण्ड की रायल सोसायटी ऑफ सर्जन्स ने एक कैलेण्डर प्रकाशित किया।  इसमें चिकित्सा इतिहास के श्रेष्ठ सर्जनों के चित्र थे।  पहला चित्र आचार्य सुश्रुत का था और उसके नीचे लिखा था- विश्‍व के प्रथम सर्जन। 

– साल भर पहले मेलबर्न (आस्ट्रेलिया) में एक चिकित्सा संस्थान के प्रवेश द्वार पर आचार्य सुश्रुत की मूर्ति स्थापित की गई।  इसके नीचे भी विश्‍व के प्रथम सर्जन ही लिखा था.

– ईस्ट इण्डिया कम्पनी के कर्नल कोर्नेल कूट तथा डॉ. थामस क्रूसो ने लिखा है – प्लास्टिक सर्जरी इंग्लैण्ड को भारत ने ही सिखाई क्योंकि भारत के गाँव-गाँव में प्लास्टिक सर्जरी करने वाले लोग मौजूद थे।  कोर्नेल कूट की हैदर अली से युद्ध में कटी नाक बेलगाँव (महाराष्ट्र) के एक नाई ने ही जोड़ी थी.

– वृक्ष आयुर्वेद जो महर्षि पाराशर ने महाभारत काल में लिखी थी, वनस्पति विज्ञान की सर्वश्रेष्ठ पुस्तक मानी जाती है।  यूनेस्को ने इसे प्राचीन धरोहरों में शामिल किया है। 

– पाइथोगोरस से पाँच सौ साल पहले बौद्ध गणितज्ञ बोधायन ने शुल्ब सूत्र पुस्तक में पाइथोगोरस थ्योरम का वर्णन किया था। 

– ॠषि भारद्वाज की पुस्तक यन्त्र सर्वस्व में अदृश्य होने वाले तथा वायुमण्डल से ही ईंधन लेने वाले विमानों का वर्णन है।  फॉक्स हिस्ट्री चैनल पर कुछ दिन पहले भारत के विमानों पर एक कार्यक्रम भी आया था।  यन्त्र सर्वस्व के ‘वैमानिक प्रकरण’ में विमानों के लिये अत्यंत हल्की तथा बेहद मजबूत धातु तैयार करने का भी वर्णन है। 

– देवी भागवत सहित अन्य पुराणों में सापेक्षवाद का सिद्धान्त समझाया गया है।  स्पष्ट किया गया है कि समय सापेक्ष (रिलेटिव) है तथा चौथा डाइमेन्शन है। 

– प्रसिद्ध वैज्ञानिक पी.सी. राय की पुस्तक हिन्दू रसायन का इतिहास में प्राचीन भारत के रसायन विज्ञान का वर्णन है।  डॉ. ए.एन. सिंह तथा डॉ. विभूतिनारायण मिश्र की पुस्तक हिन्दू गणित का इतिहास में भारत की गणित को विस्तार से बताया गया है।  इसी प्रकार की पुस्तक डॉ. बृजेन्द्र शील की हिन्दू भौतिकी का इतिहास भी है। 

– ॠषि कणाद ने बताया था कि सारे पदार्थ मूल कणों (अणु) से बने हैं।  उन्होंने इन्हें मूलकणानाम् नाम दिया।  इसी से अंग्रेजी शब्द मोलीक्यूल बना। कणाद ने परमाणु के गुण, क्रिया आदि का विस्तार से वर्णन किया है। 

– आचार्य वराहमिहिर ने यूरोप के खगोल-शास्त्रियों से बहुत पहले सभी ग्रहों की गति, भ्रमण का मार्ग आदि की सटीक गणना कर ली थी। 

सिन्धु घाटी की खुदाई में एक शिलालेख मिला, जिसमें लिखा है कि सूर्य का व्यास पृथ्वी के व्यास से 108 गुणा अधिक है।  यह एकदम सही है।  सूर्य से पृथ्वी की दूरी तथा सूर्य के व्यास (डायमीटर) का अनुपात भी 108 है।  पृथ्वी से चन्द्रमा की दूरी तथा चन्द्रमा के व्यास का अनुपात भी 108 है। 


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