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हिन्दू : भारतीय संविधान का रक्षक

संजय कु.आज़ाद

हिन्दू : भारतीय संविधान का रक्षकरांची, 25 जनवरीविश्व के प्राचीनतम या यू कहें तो लोकतंत्र की जननी भारत, अपने आजादी के उपरांत प्राप्त लोकतंत्र की 73 वी वर्षगांठ मना रही है- लोकतंत्र के इन 73 वर्षों में भारत के लोग अनेक उतार-चढ़ाव के साक्षी रहे हैं। संविधान प्रदत नागरिक अधिकारों का व्यापक हनन भी हुआ है, विशेष कर हिंदुओं के मामले में जिस प्रकार से संविधान की कुटिल व्याख्या न्यायपालिका एवं जनप्रतिनिधियों के द्वारा की गई यह संविधान निर्माताओं का गला घोटने के सदृश्य ही है। विश्व में भारत की एकमात्र ऐसा संप्रभु देश है, जहां का बहुसंख्यक हिंदू समुदाय, संविधान की गलत व्याख्या के द्वारा प्रताड़ित किया जाता रहा है। समय-समय पर अल्पसंख्यक विशेषकर मुस्लिम वोटों की लालच में फंसकर, कांग्रेस की सरकार ने, जैसी-जैसी नीतियों को जबरदस्ती घुसेड़ने का काम किया वह हिंदू नरसंहार की तरह है, और लोकतंत्र के नाते इस हिंदू नरसंहार में तत्कालीन विपक्ष के साथ-साथ तत्कालीन न्यायपालिका का भी मौन समर्थन प्राप्त था।

आज भी, भारत ही एक ऐसा लोकतंत्र है जहां गैर भारतीय पंथ के अल्पसंख्यकों को संविधान से दोहरा अधिकार, एक यहां के नागरिक के नाते तो दूसरा अल्पसंख्यक के नाते प्राप्त है। तभी तो कांग्रेस के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह कहते हैं-“यहां के संसाधनों पर अल्पसंख्यकों का पहला अधिकार है।“ किंतु कितना हस्यास्पद है कि लोकतंत्र के 73 वर्ष के बाद भी अल्पसंख्यक कौन हैं? इसे परिभाषित करने का पहल खुद संसद नहीं कर पाई? ऐसी विडंबना सिर्फ और सिर्फ भारतीय लोकतंत्र में ही पल्लवित एवं पुष्पित हुए।

विश्व में सर्वाधिक अधिकार प्राप्त अल्पसंख्यक, विशेष कर मुस्लिम, ईसाई सिर्फ और सिर्फ भारत में ही है। मानवअधिकार के तथाकथित ठेकेदार पश्चिमी देश, ईसाईयत के चोंगे में, और इस्लामी राष्ट्र शरीयत के लबादे में ढके, हमें अल्पसंख्यको के बारे में नसीहत देते नहीं थकते? उनके यहां नस्लीय भेदभाव बद से बदतर स्थिति में है। विशेष कर इस्लामी देशों में तो अल्पसंख्यकों की स्थिति निरंतर बद से बदतर है उनकी संपत्ति और उनकी महिलाएं वहां के मुस्लिम जिहादियों के रहमों करम पर सांस गिनती है।

विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहां गैर भारतीय मत के अल्पसंख्यक सारे संसाधनों पर, बहुसंख्यकों के अधिकारों पर, डाका डालते हुए वैश्विक बिरादरी में घड़ियाली आंसू बहा हिंदुओं को बदनाम करती आई है। क्योंकि सेमेटिक मत देश की सीमा को काल्पनिक मान, मत के लिए एक साथ खड़ा मिलता है। जबकि हिंदुओं के लिए कोई खड़ा होना तो दूर खुद वामपंथ की खाल में छुपे हिंदू भी, हिंदुओं को बदनाम करने का कोई भी समय जाया नहीं करता है।
यह जमात मुस्लिम व ईसाई से भी ज्यादा हिंदुओं को, हिंदू संस्कृति को, हिंदू विचारधारा को, भारत के वसुधैव कुटुंबकम के भाव को, भारतीय परंपरा को, कलंकित करने का कुकर्म किया है। क्योंकि राष्ट्र के प्रति इस वामपंथी समूह का मानना है कि भारत कभी राष्ट्र रहा ही नहीं है। आजादी से पूर्व यह समूह भारत को भाषा, क्षेत्र, जाति, मत के आधार पर लगभग 17 राष्ट्र में विभक्त करने का सपना देखा था अंततः जिन्ना के द्विराष्ट्र का प्रबल समर्थक बना और आज भी भारत विभाजन के लिए इसका एजेंडा चलता रहता है . लोकतंत्र के 73 वर्ष बाद भी यह समूह भारत के बजाय चीन को अपना हितैषी मानता है। 1962 के युद्ध के समय इन वामपंथियों और आज भी चीन के मसले पर इनका अराष्ट्रिय कृकृत्य जगजाहिर है।

आखिर आजादी के इन 75 वर्षों के उपरांत यदि स्वतंत्र भारत में किसी की क्षति हुई तो वह सिर्फ और सिर्फ हिंदू समुदाय का। इन वितण्डावादियों ने जातियों में, हिंदू समाज को विभाजित करने के लिए इस्लाम व ईसाईयत के आर्थिक और वैचारिक मायावी राक्षसों का सहारा लेकर हिंदू स्मिता को कलंकित किया। वास्तव में यह वामपंथी विचारधारा इतिहास व दर्शन पर अपने एकाधिकार, तथाकथित सेकुलरवाद की आड़ में किया जिसे तत्कालिक सरकारों ने प्रश्रय देकर हिंदू चिंतन को शून्य करने का कुकर्म किया।

फिलिप जेनकिंस ने अपने अनुसंधान में बताया है कि-“ईसाई धर्म कैसे सारी दुनिया में वर्ष 2050 तक हर दो मुसलमानों पर विश्व भर में 3 ईसाई हो जाएंगे। “इसी तरह तबलीगी जमात जिस तर्ज पर इस्लाम को फैलाने में जुटी है, इससे स्पष्ट है कि वह देशों की राजनीति सीमाओं को लांघ कर एक राष्ट्रातीत इस्लामिक अस्मिता का निर्माण चाहती है। इस दिशा में तबलीगी जमात अपने तबलीग चिल्ला (इस्लाम के काम के लिए वर्ष में कम से कम 40 दिन देना) और इज्तिमा को एक माध्यम बना काफी तेजी से कार्य कर रही है. चिल्ला और इज्तिमा के जरिए यह जमात अशरफ से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों पर अपनी कट्टर पकड़ बना रही है।
आज इस जमात का प्रभाव विश्व के 135 देशों में है। इस तबलीगी जमात पर मुख्यता देवबंदी प्रभाव है। वर्ष 1925 में इस जमात की स्थापना के साथ शरीयत आधारित समाज की अवधारणा इसका प्रमुख ध्येय,और देवबंदी उलेमाओं से निर्देशित यह जमात रही है। इस देवबंदी का प्रभाव नेहरू सहित कांग्रेस के अनेक नीतिकारों पर रही। फलत: “तुम मुझे वोट दो मैं तुम्हें संवैधानिक अधिकार दूंगा” की नीति पर आज भी कांग्रेस अमल करती आई और गैर भारतीय मत के अल्पसंख्यक को अनेक अधिकार इसी बांटो और राज करो की कांग्रेसी नीति का दुष्परिणाम है। लोकतंत्र के 73 वर्षों के बाद भी यदि अल्पसंख्यक शब्द को परिभाषित नहीं किया गया तो यह एक कांग्रेस नीत सोची समझी साजिश थी जो वदस्तूर आज भी जारी है और इस दिशा में विपक्ष भी कोई दूध की धूलि नही रही?
मतांतरण पर कठोरतम रोक नहीं लगाई, जाति, मत, भाषा, संप्रदाय या क्षेत्रवाद जैसे बीमारियों का उचित उपचार नहीं किया गया तो लोकतंत्र की दशा कैसी होगी इसका स्वप्न भी भयावह है। भारतीय मत में ही वसुधेव कुटुंबकम का भाव, सर्वे भवंतु सुखीन का भाव प्रवाहित है। यह भारत तभी एक सेकुलर राष्ट्र है जब तक इस राष्ट्र में हिंदू बहुसंख्यक है। जिस भौगोलिक भारत में हिंदू अल्पसंख्यक है वहां जाकर संविधान, कानून सभी जड़वत होकर शरीयत के आगे दंडवत हो जाती है। पश्चिम बंगाल, केरल ,पूर्वोत्तर के राज्यों में जहां-जहां हिंदू, अल्पसंख्यक इस्लाम या ईसाई बहुमत में है वहां भारत का संविधान जड़वत ही है। संविधान को इस तरह जड़वत बनाने में लोकतंत्र का रक्षक संसद और हमारी न्यायपालिका दोनों बराबर के हिस्सेदार रहे हैं। हिंदुओं का विनाश,भारतीय संविधान की विनाश का पटकथा है। अगर हम अब भी नहीं चेते तो हमारी स्थिति सिरिया या अफगानिस्तान से भी बदतर होगी। भारतीय लोकतंत्र के इस पावन पर्व पर ‘हम भारत के लोग’ तभी तक वाचन के योग्य है जबतक हिन्दू बहुसंख्यक है।


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