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अतिवाद से बचकर सभी को राष्ट्रीय जीवन की समृद्ध धारा में शामिल होना चाहिए – डॉ. मोहन भागवत जी

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि, देश में रहने वाले सभी लोगों को अतिवाद से बच कर राष्ट्रीय जीवन की समृद्ध धारा मे शामिल होना चाहिए।

अतिवाद से बचकर सभी को राष्ट्रीय जीवन की समृद्ध धारा में शामिल होना चाहिए – डॉ. मोहन भागवत जीरांची, 03 जून :नागपुर, गुरुवार को तृतीय वर्ष संघ शिक्षा वर्ग के समापन समारोह में उद्बोधन के दौरान स्वयंसेवकों को पाथेय देते हुए सरसंघचालक जी ने देश के गौरवमयी इतिहास, परंपरा और राष्ट्रीयता के भाव को अपना कर चलने का आह्वान किया। इस अवसर पर भाग्यनगर के श्रीरामचंद्र मिशन के अध्यक्ष दाजी उपाख्य कमलेश पटेल जी मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित रहे

अतिवाद से बचकर सभी को राष्ट्रीय जीवन की समृद्ध धारा में शामिल होना चाहिए – डॉ. मोहन भागवत जीसरसंघचालक जी ने कहा कि, हमें पूरे विश्व में भारत माता की विजय पताका फहरानी है लेकिन हमें विश्व को जितना नहीं है हमारी प्राचीन सभ्यता दूसरे को बलपूर्वक जीतने में विश्वास नहीं रखती हमें विश्व को स्नेहभाव से जोड़ते हुए अपनाना होगा हिन्दू धर्म वास्तव में मानव धर्म और युग धर्म है प्राचीन काल में हमारे देश में समृद्धि और सुरक्षा थी जिसके चलते हम स्नेह और बंधुत्व के बंधन में रहते हुए जीते आए हैं हमारे जीवन का वह सूत्र आज भी यथावत है उसी सूत्र पर हमारा देश दोबारा आगे बढ़ रहा है हमें स्वतंत्रता के ‘स्व’ की उन्नति के आधार पर ‘तंत्र’ बनाकर चलना होगा

अतिवाद से बचकर सभी को राष्ट्रीय जीवन की समृद्ध धारा में शामिल होना चाहिए – डॉ. मोहन भागवत जीउन्होंने कहा कि धर्म हमारे जीवन का आधार है धर्म का संरक्षण दो तरह से होता है दूसरे के आक्रमण से धर्म की रक्षा करके और आपसी व्यवहार में स्नेह और बंधुत्व से हम धर्म की रक्षा कर सकते हैं समाज को शक्ति की उपासना करनी होगी सत्य की रक्षा के लिए शक्ति का होना आवश्यक है बिना शक्ति के सत्य टिक नहीं सकता

उन्होंने कहा कि केवल यशस्वी होना हमारा उद्देश्य नहीं होना चाहिए यशस्वी तो पशु भी होते हैं हमारे यश में सार्थकता होनी चाहिए हमारे अंदर विद्या, धन और बल के साथ साथ नैतिकता होना आवश्यक है बिना नैतिकता के विद्या, धन और बल उपयोगी सिद्ध नहीं होता नैतिकता के अतिवाद से बचकर सभी को राष्ट्रीय जीवन की समृद्ध धारा में शामिल होना चाहिए – डॉ. मोहन भागवत जीकारण विद्या में सकारात्मकता, धन में दान और बल में दूसरों की सहायता का भाव पैदा होता है नतीजतन हमारे आचरण में नैतिकता का भाव होना चाहिए

सरसंघचालक जी ने रशिया-युक्रेन युद्ध का उदाहरण देते हुए बताया कि, रशिया अपने बल के आधार पर दुनिया को डरा रहा है वहीं पश्चिमी जगत की शक्तियां युक्रेन को शस्त्र उपलब्ध करा कर अपनी रोटियाँ सेक रही हैं पश्चिमी जगत हमेशा से ऐसा करते आया है मौजूदा समय में रशिया-युक्रेन विवाद पर भारत ने एकदम संतुलित भूमिका अपनाई है यदि भारत के पास पर्याप्त शक्ति होती तो भारत इस युद्ध को रोक देता लेकिन चीन जैसे शक्तिसंपन्न देश ऐसा नहीं कर रहे हैं उनके पास शक्ति और संपन्नता होने के बावजूद वह स्वार्थ में जीते हैं

अतिवाद से बचकर सभी को राष्ट्रीय जीवन की समृद्ध धारा में शामिल होना चाहिए – डॉ. मोहन भागवत जीदेश में चल रहे ज्ञानवापी के विवाद पर सरसंघचालक ने कहा कि, इतिहास हमने नहीं बनाया है भारतीय हिन्दू समाज को नीचा दिखाने के लिए विदेशी आक्रांताओं ने हमारे श्रद्धा स्थान खंण्डित किए, ऐसा इतिहास में दर्ज है हिन्दू समाज मुस्लिमों के विरूद्ध नहीं है हिन्दू किसी का विरोध नहीं करता संघ ने भी अपनी भूमिका स्पष्ट की है भारत में रहने वाले सभी लोग संविधान से चलने वाले न्यायालय के निर्णय का सम्मान करें न्यायालय के निर्णयों पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाना चाहिए

देश के विभाजन के बाद इस देश को अपना मानने वाले मुस्लिम पाकिस्तान में ना जाते हुए भारत में ही रहे उन्हें अपने से अलग नहीं समझना चाहिए हमारे पूर्वज एक ही थे यदि कोई वापस आना चाहता हो तो उसका सहर्ष स्वागत होना चाहिए यदि कोई भिन्न उपासना पद्धति में विश्वास रखता है तो हमारे ३३ कोटी देवताओं सहित अन्य कोई उपासना पद्धति जुड़ती है तो हिन्दू समाज बहुत अधिक प्रभावित नहीं होगा हम अन्य उपासना का भी सम्मान करते आए हैं और करते रहेंगे समाज में अतिवादियों को टोकना चाहिए. सरसंघचालक ने कहा कि देश में और देश के बाहर हिन्दू- मुस्लिम को लड़ाकर अपनी रोटियां सेकने वाले लोगों से हमें सावधान रहना चाहिए

भौतिक और आध्यात्मिक दोनों की संयुक्त शक्ति से देश विश्वगुरू बनेगा

अतिवाद से बचकर सभी को राष्ट्रीय जीवन की समृद्ध धारा में शामिल होना चाहिए – डॉ. मोहन भागवत जीकार्यक्रम के मुख्य अतिथि दाजी उपाख्य कमलेश जी पटेल ने कहा कि, मेरे मन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर कई भ्रांतियां थीं वे दूर हो गई हैं उनका समन्वय, समर्पण हमारे देश के लिए है आज की परिस्थिति में आतंकवादियों में समन्वय और एकता दिखाई देती है, लेकिन सात्विक लोग बहुत बड़े काम करते हैं लेकिन दो संत एक दूसरे के साथ नहीं बैठते एकता के बिना भारतमाता की जय कैसे हो सकती है हिन्दू धर्म में तीन हजार से अधिक विभिन्न जातियां और पंथ हैं वे अपने लोगों के लिए कुछ मांग रहे हैं, लेकिन सभी को सोचना चाहिए कि मैं देश के लिए क्या कर सकता हूं देश में सभी धर्मों के लोग हैं और वे पूजा-अर्चना कर रहे हैं सबका लक्ष्य भारत की प्रगति है यदि आप विश्वगुरू बनना चाहते हैं, तो दुनिया को दिशा दिखाना महत्वपूर्ण है आध्यात्मिकता चाहे कैसी भी हो, भौतिक शक्ति प्राप्त करना आवश्यक है ये दोनों शक्तियां एक पक्षी के दो पंखों की तरह हैं भौतिक और आध्यात्मिक दोनों की संयुक्त शक्ति से देश विश्वगुरू बन सकता है

अतिवाद से बचकर सभी को राष्ट्रीय जीवन की समृद्ध धारा में शामिल होना चाहिए – डॉ. मोहन भागवत जीयह एक तरह का योग है एक अकेला व्यक्ति कुछ नहीं बदलेगा करोड़ों संतों की प्रार्थना से भारत भूमि अस्तित्व में आई है उनके विचार, प्रार्थना, तपस्या, राष्ट्र निर्माण में उनका मौलिक योगदान है मैं समाज को तभी कुछ दे सकता हूं, जब मैं पहल करूं और मजबूत बनूं लोग शारीरिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत होने पर समाज के विकास में योगदान दे सकते हैं सभी समाजों, संस्थाओं को एक साथ आना चाहिए और देश का पुनर्निर्माण करना चाहिए

मंच पर वर्ग के सर्वाधिकारी अशोक पांडे, विदर्भ प्रांत संघचालक राम हरकरे, महानगर संघचालक राजेश लोया उपस्थित थे कोरोना महामारी के कारण दो वर्षों के अंतराल के पश्चात इस वर्ष ९ मई से तृतीय वर्ष वर्ग का आयोजन किया गया, जिसमें देशभर से कुल ७३५ स्वयंसेवक शिक्षार्थियों सह कुल ९०० कार्यकर्ता उपस्थित रहे. शिक्षार्थियों के लिए प्रशिक्षण में शारीरिक, बौद्धिक, सेवा के साथ अन्य विविध विषयों का समावेश था

समापन कार्यक्रम के आरम्भ में स्वयंसेवकों ने दंड, यष्टीगण, समता, दंडयोग, सामूहिक समता, योगासन आदि विविध शारीरिक प्रात्यक्षिक तथा घोष प्रात्यक्षिक प्रस्तुत किए. वर्ग कार्यवाह ख्वाई राजेन सिंह ने अपने प्रास्ताविक में वर्ग की जानकारी दी

 


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