धर्म में अधर्म का जहर मत घोलो : नरेंद्र सहगल
रांची , 12 मार्च : विशाल हिन्दू समाज (जैन, बौद्ध, सिख, सनातनी इत्यादि) का प्रत्येक त्योहार राष्ट्र की सुरक्षा, दैवी शक्तियों की विजय,प्रकृति के सौंदर्य, समाज के सुधार और सौहार्द्र का सशक्त संदेश देता है। हमारे यह पर्व आत्म सऺयम एवं मर्यादित जीवन रचना के संस्कार भी देते हैं।
इन पवित्र पर्वों पर हम सामाजिक मर्यादा में रहकर संगीत - नृत्य का आनंद ले, मंदिरों गुरूद्वारों में जाकर पूजा करें और अपने परिवार और देश की रक्षा के लिए संकल्प करें, अपने बच्चों को अपने धर्म के संस्कार दें, यह सब कुछ तो समझ में आता है।
परंतु शराब के नशे में झूमते हुए अपने बच्चों और युवा बहन बेटियों के साथ सार्वजनिक स्थानों में अश्लील फिल्मी गानों की धुनों पर गलियों में नाचें, यह समझ में नहीं आता। दुःख तो तब होता है जब इन संस्कार युक्त त्योहारों पर संस्कार विहीन कार्यक्रमों के संचालन में वे लोग भी शामिल हों जो रोज़ हिन्दुओं को संस्कारित करने का बीड़ा उठाते हों।
आज हिन्दू/हिन्दुत्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। हिन्दुत्व विरोधी अर्थात राष्ट्र विरोधी शक्तियां खुले मैदानों में एकत्रित हो कर हमारी अस्मिता को चुनौती दे रही हैं। यह लोग मस्जिदों में एकत्रित हो कर अपने समाज को मजहबी कट्टरपन में शिक्षित कर रहे हैं। अपनी भावी पीढ़ियों को हिन्दुत्व अर्थात भारत की सनातन संस्कृति और राष्ट्रीय पहचान को समाप्त करने के गुर सिखा रहे हैं और हम हिन्दू अपने धर्म आधारित त्योहारों पर अधर्म का जहर घोल रहे हैं। अपनी आंखों के सामने अपने हाथों से ही अपने बच्चों को संस्कार विहीन बना रहे हैं।
जिस अजर अमर हिन्दू (भारतीय) संस्कृति का सृजन श्री राम, श्रीकृष्ण, महावीर स्वामी, महात्मा बुद्ध, श्री गुरु नानक देव, स्वामी विवेकानंद और देवर्षि स्वामि दयानंद सरस्वती जैसे युग पुरुषों ने किया हो, उस संस्कृति को हम हिन्दू ही बर्बाद कर रहे हैं।कल मैं ने ऐसा ही एक होली कार्यक्रम अपनी ही बस्ती में देखा तो दंग रह गया।
यद्यपि मैं जानता हूं कि इस होली मिलन समारोह के आयोजक अच्छे घरों के अच्छे बच्चे हैं। उन्होंने इस तरह का पारिवारिक एकत्रिकरण यह सोच कर नहीं किया होगा कि इससे होली जैसे पवित्र एवं दैवी शक्तियों की विजय के प्रतीक त्योहार की गरिमा को चोट पहुंचेगी। मैं यह भी जानता हूं कि यह लोग सच्चे और पक्के हिन्दू हैं। दरअसल इन कार्यकर्ताओं को धार्मिक दिशा देकर मार्गदर्शन करने की आवश्यकता थी जो हम नहीं कर सके। इसलिए मैं भी इस दिशाहीन घटनाकृम के लिए जिम्मेदार हूं।
मैं इन आयोजकों, बच्चों, बहन बेटियों की ओर से सभी बस्ती वासियों को विश्वास दिलाता हूं कि भविष्य में पर्व त्यौहारों पर होने वाले पारिवारिक कार्यक्रमों में संस्कारों की मर्यादा का हनन नहीं होगा।
नरेंद्र सहगल
वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक