: vskjharkhand@gmail.com 9431162589 📠

गणतंत्र के बाद भी औपनिवेशिक मानसिकता भारतीय राजनीति का आधार

आशीष दूबे

गणतंत्र के बाद भी औपनिवेशिक मानसिकता भारतीय राजनीति का आधाररांची, 16 जनवरीईस्ट इंडिया कंपनी एक व्यापारिक संस्थान थी। जिसके लिए सुशासन कोई मायने नहीं रखता था। जिसने सुव्यवस्थित ढंग से उपनिवेश एवं भारतवासियों को लूटने का काम किया तथा 45 ट्रिलियन डॉलर की संपत्ति भी लूटा एवं षड्यंत्र के तहत भारत का गौरवशाली इतिहास, राजनीति, संस्कृति, धर्म एवं आचार और विचारों को पूरी तरह से कुचलते हुए क्षेत्रीय संस्कृतियों, धर्मों, विरासत और भाषाई आधारों को समर्थन देते हुए फूट और जातिवाद की राजनीति को मजबूत करके भारत में 200 वर्षों तक शासन किया। साथ ही साथ तुष्टीकरण की राजनीति और औपनिवेशिक गुणगान से हमारे देश के जनमानस पर कुछ इस तरह से तोड़ा कि, हम अभी तक नहीं उबर पाए और दुर्भाग्य वश हमारी शिक्षित आबादी अंग्रेजों के इन मिथकों को मानती रही। जिसके कारण आज भी भारत में अंग्रेजों द्वारा लागू किया गया Imperial justice के आधार पर बने सामाजिक न्याय के सिद्धांत जाति वर्ण एवं संप्रदाय के आधार पर एक वर्ग को विशेषाधिकार दिए जाते रहे हैं।

आज “divide and rule” रूपी अंग्रेजों का षड्यंत्र ही भारतीय राजनीति का आधार बन गया है जो भारत के विकास में एक बड़ी बाधा बनकर खड़ी हो गई है। आज भी भारत में जाति, वर्ण, वर्ग, धर्म एवं संप्रदाय के आधार पर विषेशाधिकार प्राप्त करने के प्रत्याशा में बार-बार भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में आंदोलन होते रहते हैं। जिससे यह सिद्ध होता है कि, अंग्रेजों ने चतुराई से भारत की गौरवशाली 10,000 वर्ष पुरानी इतिहास को मिटाया एवं संसार की सबसे प्राचीन और जीवंत परंपरा जो विज्ञान और विकास पर आधारित था जिसे भारतीय जनमानस के बीच से विस्मृत कर दिया है।

अंग्रेजों ने भारत में आते ही नस्लीय भेदभाव को तो बढ़ावा दिया एवं गोरी, चमड़ी की श्रेष्ठता समझने का अहंकार फैलाने लगा। साथ-ही-साथ अपने उत्पाद को बेचने के लिए भारत के स्थानीय व्यापार और कला पर भीषण प्रहार किया और भारतीय शिल्पकारों एवं कलाकारों का हांथ तक काट दिया । जिससे कारण भारतीय शिल्प और कला का पतन होता चला गया और अंग्रेजों के उत्पाद एवं वस्तुओं का मांग समाज में बढ़ता रहा। जिसका दुनिया भर में विख्यात उदाहरण ढाका के मुस्लिम बुनकरों की त्रासदी थी। अंग्रेजों ने यहां के कृषि पर भी अपना अधिकार जमा लिया था। जिसके कारण उन्होंने भारत में अफीम की खेती को भी बढ़ावा दिया ताकि, उसे पड़ोसी देश चीन में बेच सकें।

अंग्रेजों की इन सभी हरकतों के कारण 1857 में विद्रोह का ज्वालामुखी फट पड़ा। यह आक्रोश का लावा पहली बार ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रेसीडेंशियल आर्मी कैंप में फूटा। जिसे मजहबी रंग देते हुवे एवं यह कहते हुए कि, “गाय और सुअर की चर्बी में डूबे हुए कारतूस को मुंह से खोलने पड़ते थे जिसके चलते मुस्लिम और हिंदू सिपाही धर्म परिवर्तन कह कर भड़क उठे” इस आंदोलन को दबाने का प्रयास अंग्रेजों ने पूरी शक्ति और चतुराई से किया और सफल भी हुए। अगर उस वक्त के 80 हजार बागी सैनिक किसी एक के नेतृत्व में लड़े होते तो अंग्रेजों को हिंदुस्तान छोड़ देना पड़ता। परंतु अंग्रेजों ने इस आंदोलन को बड़े ही चतुराई के साथ भारतवर्ष की कौम को एक दूसरे से लड़ा कर कुचल तो दिया । परंतु ब्रिटिश सरकार इस विद्रोह से बुरी तरह हिल गई थी।

डॉ मीठी मुखर्जी की पुस्तक ” India in the shadow of Empire a legal and political history” में लिखा गया है , सर जॉन सिली के अनुसार “ब्रितानी साम्राज्य के खिलाफ बगावत का स्तर बढ़ता जा रहा था। हमने भारत के विभिन्न नस्लों को आपस में लड़ा कर इसे कुचल दिया। जब तक यह किया जा सकता है तभी तक भारत में इंग्लैंड से शासन चलाया जा सकता है। यदि परिस्थिति बदली और भारत की विभिन्न जातियां एक देश के रूप में खड़ी हो गई तो हमें देश छोड़ना पड़ेगा।

India in the shadow of Empires में डॉ मीठी मुखर्जी ने लिखा हैं कि” इस विद्रोह ने यह स्पष्ट कर दिया था कि अलग-अलग जातियों में बंटे देश के बावजूद भी भारतीय जनता में एकत्र होने की ताकत थी और यह उपनिवेशवाद पर विजय पा सकती थी। अगर ब्रिटिश साम्राज्य को भारत में रहना था तो उनके लिए इस तथ्य को कम प्रभावी बनाना आवश्यक था कि, वे विदेश से आए आक्रांता हैं।, यानी उन्हें अपने विदेशी होने को किसी तरह कम चुभने वाला तथ्य बनाना होगा। इसके लिए भारतवर्ष के लोगों में फूट डालना अनिवार्य था। इससे भी अधिक उन्होंने भारतीय संस्कृति राजनीति और इतिहास को खत्म करना जरूरी समझा, ताकि भारतीयता की पहचान और भारतीय एकता को छिन्न-भिन्न किया जा सके।

उन्होंने सांस्कृतिक राजनैतिक और ऐतिहासिक रूप से एक संकल्पना को ही काल्पनिक सिद्ध करना होगा” वह आगे कहती हैं कि,” दावा किया गया था कि न्याय और कानून व्यवस्था की बहाली के लिए यह जरूरी था कि आपसी झगड़ों से प्रताड़ित भारत पर राज्य केवल एक विदेशी सरकार ही कर सकती थी जो बाहरी होकर और इसलिए तटस्थ रहकर शासन कर सकें। सत्यता यह था कि, भारतीय समाज इस तरह जाति और वर्ण में बटा हुआ था कि आपसी भेदभाव से निपटने के लिए इसे एक विदेशी शासन की आवश्यकता थी। इसी फूट के चलते ब्रितानी ताकत को भारत में पैर पसारने में सुविधा हुई और दो शताब्दियों तक भारत पर उसका शासन रहा।

अंग्रेजों की भारत पर हुकूमत को न्यायसंगत ठहराने के लिए यह भी तर्क दिया गया कि, भारत के निरंतर झगड़ते हुए जाति और धर्म के गुणों पर नियंत्रण पाने के लिए विदेशी तटस्थ शासन की जरूरत है, जो गहराई तक भारतीय समाज के कई युद्धरत वर्गों के साथ निष्पक्ष रुप से निपट सकती थी। आगे जोड़ा गया कि विदेशी शासन की आवश्यकता सिर्फ इसलिए थी, क्योंकि भारतीय राज्य व्यवस्था गहराई तक गड़ी हुई थी और खुद पर शासन करने में असमर्थ थी। ऐसे में केवल एक बाहरी शक्ति ही समुदायों के बीच न्याय लागू कर सकती है। जिसे इंपीरियल जस्टिस के मूल सिद्धांत के रूप में पेश किया गया और अंग्रेजी शासन को न्याय संगत दिखाया गया।

अंग्रेजी शासन ने भारतीय इतिहास, संस्कृति, धर्म, आचार, विचारों, आदि को पूरी तरह से कुचलते हुए क्षेत्रीय संस्कृतियों और धर्मों, विरासतों, आस्थाओं और भाषाई आधारों को समर्थन दिया।जिससे फूट और जातिवाद की राजनीति फल फूल सकी। ऐसे में अंग्रेजों ने भारतीय इतिहास एवं संस्कृति को षड्यंत्र पूर्वक नष्ट करने हेतु वामपंथी लेखक एवं शिक्षाविदों के सहयोग से अपने हुकूमत को न्यायसंगत ठहराने के लिए, भारतीय शिक्षा पद्धति एवं इतिहास को अपने अनुरूप गढ़ने का सिर्फ प्रयास ही नहीं किया, बल्कि भारतीय संस्कृति और इतिहास को अंग्रेजों के अनरूप तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत किया। जिससे भारतीय जनमानस मानसिक गुलामी से ग्रसित रहें और कभी उनके विरुद्ध सर नहीं उठा सकें।

इसी क्रम में सर जोनरिस रिसले ने 1872 में पहली बार जाति के आधार पर सेंसस कराया एवं भारत की सभी जातियों को वर्णों के आधार पर बांट कर एक बड़े आंदोलन के सभी संभावनाओं को खारिज कर दिया। इसी प्रकार जाति का ध्रुवीकरण एवं सामाजिक न्याय की गुहार लगाकर उस समय भारत के 85% हिंदुओं को जातियों एवं समूहों में विभाजित कर दिया गया। जिससे भारत की एक बड़ी आबादी आपस में संघर्ष करता रहा और वहीं दूसरी ओर अंग्रेजों की शासन व्यवस्था लंबे समय तक भारत पर बरकरार रही।

इसके बावजूद भी भारत का एक बड़ा जनसमूह भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न प्रकार से आंदोलन करता रहा। ऐसे में सुभाष चंद्र बोस अंग्रेजों की नीतियों को बारीकी से समझे एवं भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी तथा भारत के सबसे बड़े नेता के रूप में उभरे तथा द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जापान के सहयोग से आजाद हिंद फौज का गठन किए और जय हिंद का नारा देते हुए अंग्रेजों के बिरुद्ध खूनी संघर्ष किये। जिससे 200 वर्षों की ब्रिटिश शासन की जड़ों को हिल गई। चूंकि अंग्रेज व्यवसाय करने भारत आए थे एवं आजाद हिंद फौज जैसे शक्तिशाली संगठन के समक्ष लंबे समय तक नहीं टिक सकते थे। ऐसे में भारत के सत्ता में बने रहना उनके लिए नुकसानदेह था। ऐसी स्थिति में भारतीय शासन को एक षड्यंत्र के तहत कांग्रेस वर्किंग कमिटी को सौंपने का निर्णय ले लिया। क्योंकि वे जानते थे कि, अगर भारत आजाद हुआ और कहीं भारत की शासन व्यवस्था सुभाष चंद्र बोस के हाथ में गई तो भारत एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभर जाएगा और हमें संघर्षों का सामना करना पड़ेगा।

सन 1947 में कांग्रेस वर्किंग कमेटी के द्वारा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के चुनाव में कांग्रेस वर्किंग कमिटी के 16 मत में से 14 मत सरदार वल्लभ भाई पटेल को प्राप्त हुआ। चुकी अंग्रेज जानते थे कि वल्लभ भाई पटेल राष्ट्रवादी विचारधारा के पोषक हैं और वे आजादी के बाद भारत में अंग्रेज और अंग्रेजों की नीतियों को तवज्जो नहीं देंगे और आजाद हिंद फौज को भारतीय सेना में बहाल करके पूरे राष्ट्र को एकीकृत कर लेंगे। इसी कारण से अंग्रेजों ने षड्यंत्र के तहत महात्मा गांधी को दबाव देकर अपने नीतियों के पोषक पंडित जवाहरलाल नेहरू को भारत का पहला प्रधानमंत्री बनवाने के लिए प्रेरित किया।

जिसके परिणाम स्वरूप महात्मा गांधी के दबाव में आकर कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने भारत का पहला प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और प्रथम गवर्नर जनरल के रूप में एक अंग्रेज लॉर्ड माउंटबेटन को बनाया, जो भारत के लिए एक त्रासदी थी। जबकि, अंग्रेजों के षड्यंत्रों के परिणामस्वरूप ही भारत का विभाजन हुआ था। भारत का ही एक टुकड़ा पाकिस्तान जो इस्लामिक राष्ट्र बना। जिसका प्रथम गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जीना बने जो एक पाकिस्तानी ही थे और पाकिस्तान केलिए समर्पित थे। वहीं दूसरी ओर नेहरू जी के प्रधानमंत्री बनते ही लॉर्ड माउंटबेटन के इशारे पर आजाद हिंद फौज के सिपाही उपेक्षित और प्रताड़ित होने लगे और अंग्रेजों द्वारा बनाई गई जातिगत तुष्टीकरण और वंशवाद की राजनीति फलने- फूलने लगी।

जिसके कारण भारत सिर्फ सैन्य शक्ति में ही कमजोर नहीं हुवा बल्कि नीतिगत रूप से भी कई समस्याओं का सामना करता रहा।साथ-ही-साथ इंपीरियल जस्टिस के मूल सिद्धांत के रूप में भारत में सामाजिक न्याय के सिद्धांत को स्थापित किया गया। जिसके परिणाम स्वरूप आज भी भारत में वंशवाद और जातिवाद की राजनीति हावी है।जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। भारतीय राजनीति में आज तक सत्ता में चाहे कांग्रेस हो या बीजेपी किसी ने भी इस जातिगत तुष्टिकरण की राजनीति को समाप्त करने का प्रयास नहीं किया। जिसके कारण आज भी भारत के भिन्न-भिन्न जाति समुदायों द्वारा आरक्षण एवं अन्य विशेष अधिकार केलिए उग्र आंदोलन किया जाता रहा है।

जिसके कारण आज भी भारत सरकार को अनेक परिस्थितियों एवं आर्थिक क्षतियों का सामान करना पड़ता है।आज भारत में ना तो समान नागरिक संहिता लागू हो सका और ना ही समता एवं समानता के अधिकार का निरूपण हो सका है। आज भी भारत सरकार इसी आंतरिक द्वंद्व और उग्र आंदोलन के कारण कई समस्याओं का सामना कर रहा है। जिससे विकास की गति भी अवरुद्ध हो रही है।

आज तुष्टीकरण की राजनीति और औपनिवेशिक गुणगान हमारे देश के जनमानस पर कुछ इस तरह से थोपा गया है कि, हम अभी तक नहीं उबर पाए और दुर्भाग्य से अभी भी हमारी शिक्षित आबादी अंग्रेजी शासन के इन मिथकों को सच मानती रही। जब तक हम मनोवैज्ञानिक गुलामी की बेड़ियों को नहीं तोड़ेंगे, तब तक हम एक महान सभ्यता को जो 10,000 वर्षों के इतिहास को खुद में समेटे हुए है तथा इस संसार की सबसे प्राचीनतम और जीवंत परंपरा है, को स्थापित नहीं कर सकते।

Workshop on Analyses of Social Issues By Vusualization


Kindly visit for latest news 
: vskjharkhand@gmail.com 9431162589 📠 0651-2480502